भाजपा और कांग्रेस में आदिवासी वोट' को लुभाने की मची होड़


राज्य की नवदुनिया प्रतिनिधि
भोपाल

पिछले तीन दशक से मध्य प्रदेश की सत्ता में अहम भूमिका निभा रहे आदिवासी समुदाय को लेकर भाजपा और कांग्रेस में मची होड़ खुलकर सामने आ गई है। 2023 के विधानसभा चुनाव को लक्ष्य कर चल रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ आदिवासी अधिकार यात्रा के बहाने इस वर्ग में पैठ जमाने की कोशिश कर रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी ने भी तैयारियां कर रखी हैं। 17 सितंबर को जबलपुर दौरे पर आ रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शहीद आदिवासी राजाओं शंकर शाह और रघुनाथ शाह को श्रद्धांजलि देंगे। दोनों राजाओं ने आजादी के लिए संघर्ष किया, तो तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया था। दोनों राजाओं का आदिवासी वर्ग में काफी सम्मान है।

2018 में हुए सत्ता परिवर्तन की वजह आदिवासी सीटों के परिणाम में बड़ा बदलाव था। भाजपा के हाथ से जहां आधी सीटें फिसल गई थीं, वहीं कांग्रेस ने दोगुनी छलांग लगाई थी यानी भाजपा की 32 से घटकर सीटें 16 पर आ गई थीं, वहीं कांग्रेस 14 से सीधे 29 तक पहुंच गई थी। प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित 47 विधानसभा सीटें हैं। दो दर्जन से ज्यादा सामान्य सीटें भी ऐसी हैं, जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं।

पहली बार जब 1990 में भाजपा की सुंदरलाल पटवा की सरकार बनी थी, तब भी यह आदिवासी सीटों पर भाजपा को मिली बड़ी जीत के कारण ही संभव हो सका था। लेकिन, आदिवासी वर्ग ने फिर से कांग्रेस का रुख किया और 1993 में फिर कांग्रेस ने सत्ता संभाल ली। करीब 10 साल तक यह वर्ग कांग्रेस के साथ रहा, जिससे 1998 में कांग्रेस की सरकार बरकरार रही, लेकिन 2003 के चुनाव में आदिवासी वर्ग फिर से भाजपा की तरफ मुड़ गया

नतीजा कांग्रेस की सत्ता से विदाई के रूप में सामने आया। इसके बाद से आदिवासी वर्ग कुछ आंकड़ों में हेरफेर के साथ 2008 और 2013 में भाजपा के साथ ही बना रहा, लेकिन 2018 में आदिवासी प्रभाव वाली सीटों की संख्या आधी होते ही भाजपा के हाथ से सत्ता एक बार फिर चली गई और इसका फायदा मिला कांग्रेस को, जिसके परिणाम स्वरूप कमल नाथ मुख्यमंत्री बने। हालांकि 2020 मार्च में ज्योतिदित्य सिंधिया के कांग्रेस से अलग होते ही सत्ता परिवर्तन हुआ और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने।

कांग्रेसी सियासत की तस्वीर बदल चुकी काफी हद तक


आदिवासी वर्ग को लेकर सियासत की तस्वीर तीन दशक बाद अब काफी हद तक बदल चुकी है। कांग्रेस आदिवासी नेताओं को पार्टी का चेहरा यानी शो पीस तो बनाया, लेकिन शिवभानु सिंह सोलंकी और जमुना देवी जैसे नेताओं को कांग्रेस ने कभी कमान नहीं सौंपी। दिलीप सिंह भूरिया ने आदिवासी नेतृत्व को मौका देने की बात उठाई थी तो उन्हें पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

क्यों है आदिवासी वर्ग पर नजर

मध्यप्रदेश में 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक आदिवासी वर्ग की आबादी करीब 21 फीसद से अधिक है। आदिवासी के तहत प्रदेश में 43 जनजातियां निवास करती हैं। इसमें सबसे ज्यादा भील-भिलाला की आबादी 60 लाख, गोंड 51 लाख, कोल 6.5 लाख, कोरकू 6.5 लाख, सहरिया 6 लाख हैं प्रदेश में आदिवासी वर्ग की आबादी लगभग 1.75 करोड़ अनुमानित है

इनका कहना है:- कांग्रेस के हाथ से आज आदिवासी वोट बैंक खिसक रहा है, इसी के कारण वह विदेशी ताकतों के सहयोग से समाज में विभाजन की रेखा खींच रही है। कमल नाथ यात्रा निकालकर सिर्फ आदिवासियों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं।यशपाल सिंह सिसोदिया, प्रवक्ता भाजपा मप्र💥✍

Post a Comment

0 Comments