अपने ही फैसले के विरोध में जा खड़ी हुई मध्यरप्रदेश सरकार शराब को मंहगी और बंद करने के बजाय महुए की शराब को हैरिटेज का दर्जा देने में जुटी शिवराज सरकार प्रदेश में शराब से लगभग 10 हजार करोड़ की आमदनी
विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतों की घटनाएं शांति के टापू कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में सामान्य हो गई हैं। इन घटनाओं को रोकने और प्रदेश में जहरीली शराब की ब्रिकी को लेकर प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान खुद भी विरोध में रहते हैं। लेकिन अब उनकी ही सरकार प्रदेश में महुए की मदिरा को हैरिटेज का दर्जा देने जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह निर्णय बड़ा अजीब है, एक तरफ जहां सरकार लगातार शराब का विरोध कर रही है, वहीं अब भाजपा सरकार गरीबों को एक तरह से शराब परोसकर देने की तैयारी कर रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में बीते एक वर्ष में 60 से अधिक लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हो चुकी हैं। इनमें उज्जैन जिले में 24, मुरैना जिले में 12, छतरपुर जिले में 04, ग्वालियर जिले में 02, मंदसौर, इंदौर, खंडवा और खरगौन में 14 मौतें अब तक हो चुकी हैं। लेकिन फिर भी सरकार इस पूरे मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। जबकि नियमानुसार देखा जाए तो शिवराज सरकार को शराब को मंहगा करना चाहिए, ताकि सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी हो और रोज मजदूरी करने वाला मजदूर दिन भर कमाई को यू दारू में न बहा सके। सरकार को तुरंत शराब पर 100 से 200 रूपए की बढ़ोत्तरी करने का फरमान जारी करना चाहिए, ताकि सामान्य व्यक्ति जो अभी रोज शराब का आदि हो गया है वो शराब को पीना कम कर दे।
इससे पहले शिवराज सरकार के महिलाओं द्वारा शराब की बिक्री को लेकर भी काफी विवाद हुआ था, उस समय विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शिवराज सिंह चौहान के इस फैसले को आढ़े हाथों लेते हुए कहा था कि शिवराज जी आप जब विपक्ष में थे तो प्रदेश में शराब को लेकर खूब विरोध करते थे, खूब भाषण देते थे, शराब को बहन-बेटियों के लिये खतरा बताते हुए उनको साथ लेकर धरने पर बैठते थे। अब तो आपने बहन-बेटियों को ही शराब की दुकानों पर बैठा दिया। इससे शर्मनाक व दोहरा चरित्र कुछ नहीं हो सकता है। दूसरी तरफ शिवराज सरकार चिल्ला चिल्लाकर अपना फैसला सुना रही है कि जहरीली और अवैध शराब के कारोबार में शामिल लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा। जहरीली शराब से जान जाने की स्थिति में दोषी को उम्रकैद या सजा ए मौत देने का निर्णय लिया है। लेकिन इतने लोगों की मृत्यु होने के बाद भी अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। कुल मिलाकर अब समय आ गया है कि शराब पर राजनीति बंद करके, पूरे संवेदनशीलता के साथ भाजपा सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि प्रदेश की जनता को शराब से दूर रखा जा सके।
गुजरात और बिहार में शराबबंदी को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी खजाने में शराब की कमाई का काफी योगदान है। जहां तक मध्य प्रदेश में शराब से आमदनी की बात की जाए तो प्रदेश में शराब से लगभग 10 हजार करोड़ की आमदनी होती है। ऐसी स्थिहति में शिवराज सरकार कतई नहीं चाहेगी कि शराब नीति को लेकर वह कोई बड़ा फैसला ले।
सरकार को हो चुका 250 करोड़ रुपए का नुकसान
कोरोना के चलते सरकार को शराब से होने वाली आमदनी पर असर पड़ा है। सरकार को करीब 250 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। बताया जा रहा है कि अब लाइसेंस फीस में वृद्धि होने पर सरकार को करीब 450 करोड़ रुपए की आय होगी। प्रदेश में शराब की दुकानों की संख्या पर नजर डाले तो देशी शराब दुकानों की संख्या 2541, विदेशी शराब दुकानों की संख्या 1070 और कुल बार 358 हैं।
21% की दर से बढ़ रही शराब की खपत
प्रदेश में साल दर साल शराब की खपत बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2002-03 में 7 करोड़ 40 लाख लीटर शराब की खपत थी। यह वर्ष 2019-20 में बढ़ कर 32 करोड़ 20 लाख लीटर हो गई। खपत औसतन 21 % की दर सालाना बढ़ रही है। सरकार का अनुमान है कि शराब के रेट में कम वृद्धि होने से खपत बढ़ेगी।
पिछले साल हुआ 2500 करोड़ का नुकसान
पिछले साल कोरोना के चलते सरकार को शराब से करीब 2500 करोड़ का नुकसान हो चुका है। इसकी एक वजह यह भी है कि पिछले साल अप्रैल में टोटल लॉकडाउन के कारण शराब दुकानें बंद रही। इसके बाद मई में ठेकेदारों ने दुकानें खोलने से इंकार कर दिया था, क्योंकि टेंडर के समय तय दुकान खुलने का समय कम कर दिया गया था। इस पर जून माह में आबकारी विभाग ने शराब दुकानें खोली थी। इसमें सरकार को 2500 करोड़ राजस्व घाटा हुआ था।
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